मिश्र के पिरामिडों का रहस्य जानिये
दुनिया का इतिहास जितना विस्तृत और व्यापक है उससे भी कही ज्यादा रोमांचक और रहस्यमय भी है। समय-समय पर इन रहस्यों पर से पर्दा उठाने का प्रयत्न तो किया जाता है लेकिन ये प्रयत्न किस हद तक सफलता प्रदान कर पाते हैं ये बात हमेशा से ही एक प्रश्न रही है।
अब इतिहास और रोमांच की बात उठी ही है तो ऐसे में मिस्र के रहस्यमय पिरामिडों का जिक्र ना हो ऐसा तो मुमकिन नहीं है। इस बात को शायद ही कोई व्यक्ति झुठला पाएगा कि मिस्र के पिरामिड अपने आप में एक ऐसी रहस्यमय पहेली है जिसकी हर परत को खोल पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है।
अफ्रीका महाद्वीप के उत्तरी प्रदेश मिस्र में प्राचीन काल में मृतक शरीरों पर चिह्न लगाकर उन्हें सुरक्षित स्थानों पर रखकर उनके ऊपर समाधियां बना देते थे। वहां के रहनेवालों का विश्वास था कि इन समाधियों में से आत्माएं फिर लौट आती हैं। इन समाधियों में सबसे अधिक सुरक्षित और प्रसिद्ध स्थान पिरामिड थे। ये पिरामिड बादशाहों के मृतक शरीरों को गाड़ने के लिए बनाए जाते थे
इन विशाल पिरामिडों को बहुत-से दासों ने खून-पसीना एक करके वर्षो में बनाया था। इनके लिए नील नदी के किनारे से पत्थर लाए गए थे। नील नदी यहां से नौ मील की दूरी पर है। अकेला गिजा का पिरामिड बीस वर्ष में बन पाया था।
मस्र के पिरामिड संसार की सात आश्चर्यजनक वस्तुओं में से है। आज भी ये सारे संसार में प्रसिद्ध हैं और दुनिया के कोने-कोने से लोग उन्हें देखने के लिए बड़ी उत्सुकता से आते हैं। इन पिरामिडों का कला कौशल वास्तव में निराला है।
पिरामिड में वहाँ के राजाओं के शवों को दफनाकर सुरक्षित रखा गया है। इन शवों को ममी कहा जाता है। इन पिरामिड में शवों के साथ खाद्यान, पेय पदार्थ, वस्त्र, गहनें, बर्तन, वाद्य यंत्र, हथियार, जानवर को दफनाया जाता था। यहाँ तक कि कभी-कभी सेवक सेविकाओं को भी दफना दिया जाता था । इन पिरामिडों
में सुरक्षित सभ्यता के अवशेष वहाँ का गौरव बखानते हैं । मिश्र में १३८ पिरामिड हैं और काहिरा के उपनगर गिजा का ‘ग्रेट पिरामिड’ ही प्राचीन विश्व के सात अजूबों की सूची में है। दुनिया के सात प्राचीन आश्चर्यों में शेष यही एकमात्र ऐसा स्मारक है जो सुरक्षित है।
यह पिरामिड ४५० फुट ऊंचा है। ४३ सदियों तक यह दुनिया की सबसे ऊंची संरचना रहा। १९वीं सदी में ही इसकी ऊंचाई का कीर्तिमान टूटा। इसका आधार १३ एकड़ में फैला है जो करीब १६ फुटबॉल मैदानों जितना है। यह २५ लाख चूनापत्थरों के खंडों से निर्मित है जिनमें से हर एक का वजन २ से ३० टनों के बीच है। ग्रेट पिरामिड को इतनी बारीकियों के साथ बनाया गया है जिसे वर्तमान तकनीक भीशायद दोबारा नहीं बना सके। कुछ साल पहले तक (लेसर किरणों से माप-जोख का उपकरण ईजाद होने तक) वैज्ञानिक इसकी सूक्ष्म सममिति (सिमट्रीज) का पता नहीं लगा पाये थे, प्रतिरूप बनाने की तो बात ही दूर! इसका निर्माण करीब २५६० वर्ष ईसा पूर्व मिस्र के शासक खुफु के चौथे वंश द्वारा अपनी कब्र के तौर पर कराया गया था। इसे बनाने में करीब २३ साल लगे
म्रिस के इस महान पिरामिड को लेकर अक्सर सवाल उठाये जाते रहे हैं कि बिना मशीनों के, बिना आधुनिक औजारों के मिस्रवासियों ने कैसे विशाल पाषाणखंडों को ४५० फीट ऊंचे पहुंचाया और इस बृहत परियोजना को महज २३ वर्षों मे पूरा किया? पिरामिड मर्मज्ञ इवान हैडिंगटन ने गणना कर हिसाब लगाया कि यदि ऐसा हुआ तो इसके लिए दर्जनों श्रमिकों को साल के ३६५ दिनों में हर दिन १० घंटे के काम के दौरान हर दूसरे मिनट में एक प्रस्तर खंड को रखना होगा। क्या ऐसा संभव था? विशाल श्रमशक्ति के अलावा क्या प्राचीन मिस्रवासियों को सूक्ष्म गणितीय और खगोलीय ज्ञान रहा होगा? विशेषज्ञों के मुताबिक पिरामिड के बाहर पाषाण खंडों को इतनी कुशलता से तराशा और फिट किया गया है कि जोड़ों में एक ब्लेड भी नहीं घुसायी जा सकती। मिस्र के पिरामिडों के निर्माण में कई खगोलीय आधार भी पाये गये हैं, जैसे कि तीनों पिरामिड आ॓रियन राशि के तीन तारों की सीध में हैं। वर्षों से वैज्ञानिक इन पिरामिडों का रहस्य जानने के प्रयत्नों में लगे हैं किंतु अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है।
पिरामिड बनाना आसान नहीं था. मिस्रवासियों को इस कला में दक्ष होने में काफी समय लगा. विशाल योजना बना कर नील नदी को पार कर बड़ेबड़े पत्थर लाने पड़ते थे. पिरामिड बनाने में काफी मजदूरों की आवश्यकता होती थी. पत्थर काटने वाले कारीगर भी अपने फन में माहिर होते थे. ऐसी मान्यता है कि पिरामिड ईसापूर्व 2690 और 2560 शताब्दियों में बनाए गए. सब से पुराना पिरामिड सक्कारा में स्थित जोसीर का सीढ़ीदार पिरामिड है. इसे लगभग 2650 ईसापूर्व बनाया गया था. इस की प्रारंभिक ऊंचाई 62 मीटर थी. वैसे काहिरा में गीजा के दूसरी शताब्दी ईसापूर्व के पिरामिड संसार के 7 आश्चर्यों में शामिल हैं.
वर्तमान में मिस्र में अनेक पिरामिड मौजूद हैं, इन में सब से बड़ा पिरामिड राजा चिओप्स का है. राजा चिओप्स के पिरामिड के निर्माण में 23 लाख पत्थर के टुकड़ों का इस्तेमाल हुआ था. इसे बनाने में एक लाख मजदूरों ने लगातार काम किया था. इसे पूरा होने में करीब 30 वर्ष का समय लगा. इस के आधार के किनारे 226 मीटर हैं तथा इस का क्षेत्रफल 13 वर्ग एकड़ है. मिस्र के पिरामिडों का रहस्य जानने के लिए नवीनतम टैक्नोलौजी का उपयोग किया जा रहा है. इस दौरान जानने का प्रयास किया जाएगा कि इन पिरामिडों को किस तकनीक से बनाया गया है और इन के अंदर ऐसे चैंबर तो नहीं हैं, जिन्हें अब तक नहींखोला जा सका है. इस के लिए इन्फ्रोटड कार्योग्राफी का इस्तेमाल किया जाएगा. यह तकनीक किसी चीज से निकलने वाली इन्फ्रारैड ऊर्जा और उस के आकार वगैरा की पहचान करती है. फिर उस के जरिए छिपी हुई चीज का पता चलना आसान हो जाता है.
1922 में तूतनखामन की ममी को खोजा गया था. ब्रिटिश पुरातत्त्ववेत्ता हौवर्ड कार्टर ने फराओ (राजा) की इस ममी को ढूंढ़ा था. ममी ने तावीज पहन रखा था और पूरा चेहरा सोने से बने मास्क से ढका हुआ था. कार्टर और उन की टीम ने फराओ के चेहरे से मास्क भी उतारा था. कहा जाता है कि अब तक केवल 50 लोगों ने तूतनखामन के चेहरे को देखा है. इस ममी को एक ताबूत में रखा गया था और जब इस प्राचीन शासक के शरीर को इस से बाहर निकाला गया तो उस का चेहरा झुर्रीदार और काला था. हालांकि बाद में वापस मास्क लगा दिया गया था. उन की कब्र से सोने और हाथी दांत की बनी ढेरों कीमती चीजें मिली थीं.
आप जानते हैं इन पिरामिडो को बनाने की तकनीक के बारे में अब तक कुछ भी पता नही चला है। वैज्ञानिक कई सालों से इस बात को जाने में लगे है लेकिन कोई सफलता नही मिली।
वैज्ञानिकों का कहना है कि सभी पिरामिड उत्तर-दक्षिण एक्सिस पर बने हैं अर्थात उन सभी को उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध के प्रभाव को जानकर बनाया गया है। इसका भू-चुम्बकत्व एवं ब्रह्मांडीय तरंगों से विशिष्ट संबंध है।
उत्तर-दक्षिण गोलार्धों को मिलाने वाली रेखा पृथ्वी की चुम्बक रेखा है। चुम्बकीय शक्तियां विद्युत-तरंगों से सीधी जुडी हुई हैं, जो यह दर्शाती हैं कि ब्रह्मांड में बिखरी मैग्नेटोस्फीयर में विद्यमान चुम्बकीय किरणों को संचित करने की अभूतपूर्व क्षमता पिरामिड में है। यही किरणें एकत्रित होकर अपना प्रभाव अंदर विद्यमान वस्तुओं या जीवधारियों पर डालती हैं। इन निर्माणों में ग्रेनाइट पत्थर का उपयोग भी सूक्ष्म तरंगों को अवशोषित करने की क्षमता रखता है। इससे यह सिद्ध होता है कि प्राचीन लोग इसके महत्व को जानते थे। मतलब यह कि पिरामिड में रखी वस्तु या जीव की गुणवत्ता और उम्र में इससे कोई फर्क पड़ता होगा
पिरामिडों में ही शव क्यों रखे जाते हैं?
पिरामिडों की कुल ऊंचाई की ऊंचाई पर रखे शव (ममी) आज तक अविकृत हैं। पिरामिड में प्रकाश, जलवायु तथा ऊर्जा का प्रवाह संतुलित रूप में रहता है जिसके चलते कोई भी वस्तु विकृत नहीं होती। यह रहस्य प्राचीन काल के लोग जानते थे। इसीलिए वे अपनी कब्रों को पिरामिडनुमा बनाते थे और उसको इतना भव्य आकार देते थे कि वह हजारों वर्ष तक कायम रहे।
प्राचीन मिस्री सम्राट अखातून का नाम संस्कृत में अक्षय्यनूत का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है शरीर अक्षय्य तथा नित नया रहता है। इस प्रकार पिरामिड विद्या अमरता की विद्या है। प्रतिदिन कुछ समय तक पिरापिड में रहने से व्यक्ति की बढ़ती उम्र रुक जाती है
मिस्र के पिरापिडों पर आज भी शोध जारी है।
हर बार यहां नए रहस्यों का पता चलता है। समय समय पर दुनिया भर के इंजीनियर और वैज्ञानिक पिरामिड और ममी से जुड़े रहस्यों को समझे के लिए शोध करते रहते हैं। इसी तरह के एक शोध में जर्मनी के बॉन विश्वविद्यालय में कुछ वैज्ञानिक एक 12 सेंटीमीटर लंबी बोतल के अंदर के राज जानना चाह रहे हैं जो इथोपिया के एक पिरामिड से मिली है। ये खूबसूरत छोटी सी बोतल धातु की नहीं है। मिट्टी और सगंमरमर की बनी है। बोतल करीब साढ़े तीन हजार साल पुरानी बताई जा रही है जिसमें सूख चुका इत्र है।
वैज्ञानिकों ने इस बोतल का सिटी स्कैन किया और पता चला कि इत्र सूख चुका है। खोज बीन करने वालों के मुताबिक इस इत्र का इस्तेमाल मिस्त्र की तत्कालीन राजकुमारी फाराओ हेट्सेप्सुट करती थीं। हेट्सेप्सुट ने तब के मिस्र पर पच्चीस साल तक राज किया। बहरहाल, वैज्ञानिक चाहते हैं कि इस इत्र की हूबहू नकल तैयार की जाए।
हालांकि मिस्र के विश्व-प्रसिद्ध गीजा के पिरामिड के अंदर क्या है यह जानने में अभी और समय लगेगा। इसके अंदर जाने का कोई रास्ता नहीं है।
हालांकि वैज्ञानिक को अभी तक यह समझ में नहीं आ रहा हैं कि पिरामिड के ऊपर ऐसा क्या है जो इतनी तेज बिजली का उत्पादन कर सकता है कि संपूर्ण पिरामिठ बिजली से रोशन हो जाए।
एक अरबी गाइड की सहायता से ग्रेट पिरामिड के सबसे उपर पहुंचे सर सीमन ने इसका खुलास किया था कि ग्रेट पिरामिड का संबंध आसमानी बिजली से है। इसी तरह गीजा के पिरामिड में ही नहीं दुनियाभर के पिरामिड अभी भी रहस्य की चादर में लिपिटे हुए है
सभी चित्र --गूगल के सौजन्य से
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